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Showing posts from December, 2023

उम्र-ए-रफ़्ता and रक्श-ए-उम्र

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सुना था उम्र-ए-रफ़्ता लौटकर आती नहीं, रक्श-ए-उम्र में जिक्र-ए-यार से अक्सरहां, जोश-ए-जवानी सी मौज-ए-रवानी क्या है...                                       - अभय सुशीला जगन्नाथ 

वही बनारस, वही घाट

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हर सहर जहाँ मिली तुम, ख़ुश्बू बिखेरे बाद-ए-सबा, अजनबी सी लगती है, उस शहर की आब-ओ-हवा, वही बनारस, वही घाट, पर कहाँ वो नाम-ओ-निशाँ... उसी सुबह-ए-बनारस और गोधुलिया घाट पर काश, हवाओं संग, फ़ज़ाओं फिर तू, लिख बिखेरे वो दास्ताँ, मैं और मेरी आवारगी..और तंग ख़्वाबों दिल-ए-नादाँ...                                                                                                             - अभय सुशीला जगन्नाथ 

Teenage, A Long-Dormant

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  Forget ! Days, Months and Years... Together, what we spent ! I cherish , every single moment ! As for me you are... Funny, Inspiring and at the same time, Important and Decent ! Here is my wish, as a BDay present... May the year be filled with, Adventure and Excitement, as our Teenage, A Long-Dormant                          -  Abhay Sushila Jagannath

बाग़ों के गुलाब थे खिले, रुख़सार-ए-तबस्सुम

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सुबह-ए-बनारस तारीफ में, देख एक गुलाब को, यूँ ही कुछ शब्द थे लिखे, मैंने दिल-ए-बेताब को, शेर-ओ-शायरी बना गयी, वो हटाकर नक़ाब को   कि बाग़ों के गुलाब थे खिले, रुख़सार-ए-तबस्सुम बा-मुश्किल था सम्भाला मैंने, अहद-ए-शबाब को                              - अभय सुशीला जगन्नाथ Dimple Diva, Ravishing Rose with Stunning Smile & Twinkle Eyes A Gorgeous Girl, A Lovely Lady, A Wonder Woman... Beauty in Disguise   #Dazzling  #Dimple  #Ravishing  #Rose  #Stunning #Smile  #Gorgeous  #Girl  #Lovely  #Lady  #Wonder #Woman  #Beauty  #Disguise

तेरी किस्मत...

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सदियों का तेरा ज़र्द रुख़, वो खुश्क लब, वो वहम, वो दहशत... एक घूंघट या माथे चुन्नी, इक नक़ाब-ओ-हिजाब तेरी किस्मत... भरी महफ़िल उस झुके सर को, आज क्यूंकर तूने उठा लिया !                                                                - अभय सुशीला जगन्नाथ 

सुनो ना चाँदनी ! सुनो न सुनयना !

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सुनो न सुनयना !  पीपल तले वो पुराना मंदिर, और तालाब किनारे वो स्कूल, यूँ ही पड़ जाते हैं,  अब भी मेरे डगर में... मैं और मेरी आवारगी ! अक्सरहां जब चले जाते हैं, नादान-अंजान से तेरे शहर में... शायद ढूंढते हैं वो गली, जो खो गयी उस राह गुजर में, या फिर वो छत, वो चौबारा, जहाँ खोए हम पहली नज़र में... आज फिर ख्यालों के रहगुज़र में, खुल रही है वो अधखुली खड़की, जिनसे हटता था परदा कभी दोपहर में... और निकल रहा है वो माहताब, कभी चाँदनी सा चौथे पहर में... और कभी बन वही आफताब, एक नूर-ए-सहर, मेरी नज़र में... सुनो ना चाँदनी ! क्या तू और तेरी दीवानगी भी, यूँ ही फिरते हैं... ऐसे किसी सफर में !                                  - अभय सुशीला जगन्नाथ 

कुछ लम्हे

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  कुछ लम्हे चुरा कर के, उन हसीं बहारों से एक रोज़ गुज़रे वो, इश्क़-ए-राह-गुज़ारों से Love Birds, somewhere… in Outskirts ! - Abhay Sushila Jagannath

अल्हड़ मुस्काती लड़की, आवारा मनमौजी लड़का,

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किसी गली के मोड़ पे, रंग-बिरंगे परदों के बीच, एक अधखुली खिड़की... बाहर एक साइकिल रोक, चढ़ी हुई चेन चढ़ाता लड़का,  गमलों बीच झांकती लड़की... पुराने मकान के चौबारे पे, चमकती बिजलियों के बीच, बादलों की गरजती घुड़की... पेड़ों के नीचे छिपता-छिपाता, अंजुर में बूंदे संजोता लड़का, ज़ुल्फ़ों बारिशें बरसाती लड़की... किसी मोहल्ले के छत पे, चाँदनी रात में सितारों बीच, जुगनुओं की जगमगाहट हल्की... उसी लाइट कटी अँधेरी चाँदनी, टॉर्च जलाता  और  बुझाता लड़का, मोमबत्ती जलाकर शर्माती लड़की... फिर आगले दिन सुबह-सबेरे, स्कूल-कॉलेज को आते जाते... कभी साइकिल, तो मोटर-साइकिल,  अल्लहड़ हवा संग उड़ाता लड़का... कभी रिक्शा, तो लूना-स्कूटी, वो बाद-ए-सबा महकाती लड़की... उसी स्कूल-कॉलेज सीढ़ियों पे, खामोशियों की सरगोशियों में, डर-डर कर हकलाता लड़का, थर-थर कर थर्राती लड़की... आज भी किसी गली के मोड़ पे, किन्ही रंग-बिरंगे परदों के बीच, होगी कहीं एक अधखुली खिड़की... वहीं चबूतरे पे गप्पे लड़ाता लड़का, और स्टडी-टेबल वो पढ़ती लड़की... उल्टी चला कर वक़्त की चरखी, पुरानी यायावरी से आज फिर यूँ ही, मैं और मेरी आवारगी, ले रहे फिरकी...  कि कहीं तू ही तो नही