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Showing posts from January, 2024

सर्द सुब्ह-ओ-बनारस

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सर्द सुब्ह-ओ-बनारस की रवां हवा, सिगरेट का वो धुआं, कुल्हड़-चाय से उठती भाप, और कोहरा चीरती वो जवां, नरगिसी आँखें, शरम-ओ-हया पे वो तबस्सुम-ए-पिन्हां, नूर-ए-शफ़क़ सी रंग-ए-रुख़सार की तपिश लिए वहां, गुज़रती थी गली के मोड़ से, शाम-ओ-सहर अक्सरहां...  हसीं उन ख्यालों की गर्माहट में, आज भी हैं रवां-रवां, मैं और मेरी आवारगी, और यायावर बनारसी हमनवां... कंपकंपाती कड़क सर्द-ठंडियों का, छोटा सा इक बयां ! तबस्सुम-ए-पिन्हां= छुपी हुई मधुर सी हलकी हँसी नूर-ए-शफ़क़= सुबह या शाम की लाली / लालिमा  रवां-रवां = आवारा, व्याकुल यायावर= बेफिक्रे आवारा  #कंपकंपाती #कटकटाती #कड़क #बर्फानी #ठण्ड #सर्द #ठंडी #Shivering #Bitter #Freezing #Snowy #Cold #Cool #Coldness                                                                               - अभय सुशीला जगन्नाथ Beauty of sunlight, is in twilights, But beauty itself lies, in your twinkling eyes...

अब नींद आये या ना आये

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अब नींद आये या ना आये, ना गिला-शिकवा न मलाल, नींद आ जाये तो तेरे ख्वाब, नींद ना आये तो तेरे ख़याल, मैं और मेरी आवारगी, और तेरे जमाल का हसीं कमाल                                                            - अभय सुशीला जगन्नाथ 

माँ कहाँ किस मोड़ गयी !

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चप्पल पहनने को बोल वो, अक्सर अकेला छोड़ गयी, बचपन की यही बात मुझको, अब भी रोज़ाना तोड़ गयी... देखूंगा अबकी नंगे पांव जाके, माँ कहाँ किस मोड़ गयी ! टाइप 3 डी०एल०डब्ल्यू० के तालाब वाली लाइन का एक बंगला, और माता जी की अमिट छवि, मोटा चश्मा, दूधिया-गोरा सुंदर मुखड़ा, हल्के धीमे कदमों से एकदम पास आकर पूछना कौन ? अभय !   आ जाओ, और फिर वो आवाज़ गोलू ! अभय और गौतम आएं है ! दसवीं के बाद अश्विनी भी अक्सर साथ होता था, परंतु तब भी माता जी मेरे नाम से ही ग्रुप को संबोधित करती थीं क्योंकि, माता जी मुझे बाल निकेतन से जानती थी और जब ज्ञानेंद्र के साथ हमारा एडमिशन बी०एच०यू० वाले केंद्रीय विद्यालय में हुआ तब रिक्शे से ज्ञानेंद्र के साथ आने जाने के कारण वो मुझे ज्यादा मानने लगीं हम दोस्तों को कभी भी नही लगता था कि वह सिर्फ ज्ञानेंद्र और वंदना दीदी की मम्मी हैं हमारे ग्रुप स्टडी के बीच बीच मे आकर,  " चाय बना दू या फिर कुछ खाने के लिए बना दू " ये सब आवाज़ मेरे कानों में तब से गूंज रहा है, जब से गोलू ने यह दुखद खबर सुनाई बचपन से, गोलू बहुत करीबी दोस्त है, और माता जी के हाथ का आलू की सब्ज़ी और पराठा लेकर आत

वइसन खिचड़िया कबहूँ फेर आयी

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तिलकूट गज़क अउर चुड़वा के लाई, नाती-नतिनियन खातिर नानी बनवायी, का वइसन खिचड़िया कबहूँ फेर आयी...                                   - अभय सुशीला जगन्नाथ  

तलब ताल डिंपल

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तेरे इश्क़ में मिला, हर एक गम, इतना ज्यादा होगा, इसका कुछ अंदाज़ा न था... तलब ताल डिंपल की, झील सी गहराई में, डूब उबर न पाओगे, तुम्हे भी इसका अंदाज़ा न था..                                                         - अभय सुशीला जगन्नाथ तेरे इश्क़ में मिला, हर एक गम, इतना ज्यादा होगा, इसका कुछ अंदाज़ा न था, उन्होंने मुस्कुरा कर कहा ;अब मुझे क्यों इलज़ाम देते हो, मेरे खूबसूरत तलब ताल डिंपल, और आँखों की झील सी गहराई का, डूबने से पहले, तुम्हे ही इसका अंदाज़ा न था                                                                - अभय सुशीला जगन्नाथ   तेरे इश्क़ में मिला, हर एक गम, इतना ज्यादा होगा, इसका कुछ अंदाज़ा न था... तालाब ताल डिंपल की, झील सी गहराई में, डूब उबर न पाओगे, तुम्हे भी इसका अंदाज़ा न था..

पीपल तले वो पुराना मंदिर, और तालाब किनारे वो स्कूल

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पीपल तले वो पुराना मंदिर, और तालाब किनारे वो स्कूल, यूँ ही पड़ जाते हैं, अब भी मेरे डगर... मैं और मेरी आवारगी ! जब सोचते हैं चलो चले जाते हैं, यूँ ही नादान-अंजान फिर उस शहर...  दिखता है वो बचपन, वो जवानी, वो अल्हड़ भरी बेतुकी सी कारस्तानी, और नरगिस-ए-नाज़ के वो दिलकश भंवर,  पुरवइया बसंती बयार के पुराने हमसफ़र इंटर कॉलेज और सेंट जॉन्स डी०रे०का० के राहगुज़र के०वि०, डीे0एल0डब्ल्यू की वो शाम-ओ-सहर, इक नज़र                                                                 - अभय सुशीला जगन्नाथ  मैं और मेरी आवारगी ! कभी सोचते हैं चलो चले जाते हैं, यूँ ही नादान-अंजान फिर उस शहर...  पीपल तले वो पुराना मंदिर, और तालाब किनारे वो स्कूल, यूँ ही पड़ जाते हैं, अब भी मेरे डगर... दिखता है वो बचपन, वो जवानी, वो अल्हड़ भरी बेतुकी सी कारस्तानी,  और नरगिस-ए-नाज़ के वो दिलकश भंवर,  के०वि०, डीे0एल0डब्ल्यू की शाम-ओ-सहर, इक नज़र                                                            - अभय सुशीला जगन्नाथ                                         

वो नज़र, वहीं बेक़रार है...

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माना आज संग में तेरे, करार-ए-दिल बेशुमार है, पास है तू, फिर भी ये क्यूँ, ना जाने कैसा ख़ुमार है, उसी वक़्त-ए-रुख़सत का, क्यूँकर मुझे इंतज़ार है... मैं और मेरी आवारगी सोचते हैं यूँ ही कभी कभी, शायद वो गली, वो मोड़, वो नज़र, वहीं बेक़रार है..                                                                                                          - अभय सुशीला जगन्नाथ

कलम-माइक लिए ताक़त हूँ

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नफ़ासत वास्ते नज़ाकत हूँ,  लियाक़त वास्ते सदाक़त हूँ रफ़ाक़त वास्ते शराफ़त हूँ,  अदावत वास्ते हिमाक़त हूँ,  आफ़त वास्ते जुरअत ... मैं  कलम-माइक लिए ताक़त हूँ !                  - अभय सुशीला जगन्नाथ नाज़ुकता के लिए कोमलता हूँ, योग्यता के लिए सत्यता हूँ,  मित्रता के लिए सज्जनता हूँ,  शत्रुता के लिए धृष्टता हूँ,  संकट के लिए शक्ति हूँ,  कलम-माइक से सक्षम मैं, पत्रकारिता लिए सक्षमता हूँ                        - अभय सुशीला जगन्नाथ नाज़ुकता के लिए कोमलता हूँ, योग्यता के लिए सत्यता हूँ,  मित्रता के लिए सज्जनता हूँ,  शत्रुता के लिए धृष्टता हूँ,  संकट के लिए हिम्मत... मैं,  कलम-माइक लिए सक्षमता  हूँ !                                                - अभय सुशीला जगन्नाथ

UNIQUE एको अहम्

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एको अहम्, द्वितीयो नस्ति के ताबीर, साहिब-ए-तदबीर का यक़ीनी तहरीर, फिर फ़र्क क्या है कातिब-ए-तक़दीर, क़ायनात  का मैं इक वज़ीर बे-नज़ीर ! I believe in the plans, I have made for Me, So why should I bother? What's written in Destiny ! Interpreted from a Mystique… There is no one, Like Me, I am the only one, UNIQUE ! जे आपहू भाग-करम आपे लिखनी, त का लिख करीहन विधाता हमार ! नइखे हमरा जइसन केहू धरती पर, ना आगे लीहन केहू कोख अवतार ! 'अपरमपार' एह जगत में, हम हँई एक 'अपार' ! Happy New Year to All my UNIQUEs ! मेरे सभी  अद्विती-अद्वित बोले तो अद्वैत/ बेनज़ीर  को नव वर्ष की शुभकामनाएँ ! हमरा सब 'अपार' अदितियन अउर अदितवन के नयका साल, झमाझम-बमाबम होखे !  मूल श्लोक : Original Verse =  एको अहम, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति ! Eko Aham Dwitiyo Nasti, Na Bhuto Na Bhavishyati !  ताबीर =  अभिप्राय,  अर्थ, मतलब, आशय, तात्पर्य Interpretation, Explanation,  Manifestation साहिब-ए-तदबीर = बुद्धिमान्, नीतिज्ञ, अक्लमंद Prudent or Discreet Man, Man of Tact or of Resources  तहरीर  = विवरण